दिवाली के एक दिन बाद ब्रज के घर-घर में गिरिराज पूजा और अन्नकूट का उल्लास रहा। भक्ति रस में घुली गोवर्धन की आध्यात्मिक छटा निराली थी। गोवर्धन पूजा के आधार गिरिराज जी के धाम जो पहुंच सके, वे दिव्य दर्शन के साक्षी बनकर खुद को धन्य मान रहे थे। देशी-विदेशी भक्तों ने पंचामृत से गिरिराज शिला का दुग्धाभिषेक और छप्पन भोग लगाया। गोवर्धन परिक्र्रमा समेत अन्य स्थानों के मंदिरों में अन्नकूट व छप्पन भोग के दर्शन हुए।
सोमवार को गोवर्धन में गिरधर गौड़ीय मठ में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी भक्त गिरिराज पूजा के लिए उमड़े। भजन संकीर्तन पर झूमते गाते भक्त गौड़ीय मठ से चलकर राजा मंदिर पहुंचे। यहां सर्वप्रथम गिरिराज शिला पर पंचामृत से दुग्धाभिषेक किया। भजन-पूजन से आह्लादित विदेशी भक्तों ने जमकर नृत्य भी किया। गिरिराज परिक्रमा के सभी गिर्राज मंदिरों में पूजा के लिए सुबह से ही लाखों भक्त गोवर्धन पहुंच चुके थे। चारों ओर एक अलौकिक उत्सव-सा था।
दोपहर तीन बजे के बाद गोवर्धन के अन्य मंदिरों यथा, दानघाटी मंदिर में भी अन्नकूट और छप्पन भोग के दर्शन हुए। श्रद्धालुओं ने बड़े प्रेम से अन्नकूट का प्रसाद भी ग्रहण किया। सुबह से ही मंदिरों और घरों में गोबर से बने गोवर्धन बनाए गए।
गोवर्धन पूजा का आधार
इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखता है। गोवर्धन पूजा में गोधन या गाय की पूजा की जाती है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोक कथा है। जब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को सात दिन तक अपनी अंगुली पर धारण कर ब्रजवासियों और उनके गोधन की इंद्र के कोप स्वरूप मूसलाधार वर्षा से रक्षा की थी।
सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने इंद्र के अंहकार को चूर करने के साथ ही आम जनमानस को गायों के चरने के स्थान गोवर्धन पर्वत के महत्व को भी समझाया। तभी से दीपावली के दूसरे दिन यह भक्ति उत्सव परंपरा चलती आ रही है।
ब्रज के अन्य मंदिरों में भी पूजे गए गोवर्धन
गोवर्धन के अलावा मथुरा के द्वारिकाधीश, श्रीकृष्ण जन्मस्थान, वृंदावन के राधादामोदर मंदिर, इस्कॉन, केशवधाम आदि में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट आयोजित हुए। इसके अलावा गोकुल, बलदेव, नंदगांव और बरसाना में भी घर-घर गोवर्धन पूजा व अन्नकूट हुए।
सोमवार को गोवर्धन में गिरधर गौड़ीय मठ में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी भक्त गिरिराज पूजा के लिए उमड़े। भजन संकीर्तन पर झूमते गाते भक्त गौड़ीय मठ से चलकर राजा मंदिर पहुंचे। यहां सर्वप्रथम गिरिराज शिला पर पंचामृत से दुग्धाभिषेक किया। भजन-पूजन से आह्लादित विदेशी भक्तों ने जमकर नृत्य भी किया। गिरिराज परिक्रमा के सभी गिर्राज मंदिरों में पूजा के लिए सुबह से ही लाखों भक्त गोवर्धन पहुंच चुके थे। चारों ओर एक अलौकिक उत्सव-सा था।
दोपहर तीन बजे के बाद गोवर्धन के अन्य मंदिरों यथा, दानघाटी मंदिर में भी अन्नकूट और छप्पन भोग के दर्शन हुए। श्रद्धालुओं ने बड़े प्रेम से अन्नकूट का प्रसाद भी ग्रहण किया। सुबह से ही मंदिरों और घरों में गोबर से बने गोवर्धन बनाए गए।
गोवर्धन पूजा का आधार
इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखता है। गोवर्धन पूजा में गोधन या गाय की पूजा की जाती है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोक कथा है। जब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को सात दिन तक अपनी अंगुली पर धारण कर ब्रजवासियों और उनके गोधन की इंद्र के कोप स्वरूप मूसलाधार वर्षा से रक्षा की थी।
सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने इंद्र के अंहकार को चूर करने के साथ ही आम जनमानस को गायों के चरने के स्थान गोवर्धन पर्वत के महत्व को भी समझाया। तभी से दीपावली के दूसरे दिन यह भक्ति उत्सव परंपरा चलती आ रही है।
ब्रज के अन्य मंदिरों में भी पूजे गए गोवर्धन
गोवर्धन के अलावा मथुरा के द्वारिकाधीश, श्रीकृष्ण जन्मस्थान, वृंदावन के राधादामोदर मंदिर, इस्कॉन, केशवधाम आदि में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट आयोजित हुए। इसके अलावा गोकुल, बलदेव, नंदगांव और बरसाना में भी घर-घर गोवर्धन पूजा व अन्नकूट हुए।
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